वांछित मन्त्र चुनें

किस्वि॒द्वनं॒ कऽउ॒ स वृ॒क्षऽआ॑स॒ यतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी नि॑ष्टत॒क्षुः। मनी॑षिणो॒ मन॑सा पृ॒च्छतेदु॒ तद्यद॒ध्यति॑ष्ठ॒द् भुव॑नानि धा॒रय॑न् ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किम्। स्वि॒त्। वन॑म्। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सः। वृ॒क्षः। आ॒स॒। यतः॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। नि॒ष्ट॒त॒क्षुः। नि॒स्त॒त॒क्षुरिति॑ निःऽतत॒क्षुः। मनी॑षिणः। मन॑सा। पृ॒च्छत॑। इत्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। तत्। यत्। अ॒ध्यति॑ष्ठ॒दित्य॑धि॒ऽअति॑ष्ठत्। भुव॑नानि। धा॒रय॑न् ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:20


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - प्रश्न−हे (मनीषिणः) मन का निग्रह करनेवाले योगीजनो ! तुम लोग (मनसा) विज्ञान के साथ विद्वानों के प्रति (किं, स्वित्) क्या (वनम्) सेवने योग्य कारणरूप वन तथा (कः) कौन (उ) वितर्क के साथ (सः) वह (वृक्षः) छिद्यमान अनित्य कार्यरूप संसार (आस) है, ऐसा (पृच्छत) पूछो कि (यतः) जिससे (द्यावापृथिवी) विस्तारयुक्त सूर्य्य और भूमि आदि लोकों को किसने (निष्टतक्षुः) भिन्न-भिन्न बनाया है? उत्तर−(यत्) जो (भुवनानि) प्राणियों के रहने के स्थान लोक-लोकान्तरों को (धारयन्) वायु, विद्युत् और सूर्य्यादि से धारण करता हुआ (अध्यतिष्ठत्) अधिष्ठाता है, (तत्) (इत्) उसी (उ) प्रसिद्ध ब्रह्म को इस सब का कर्त्ता जानो ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र के तीन पादों से प्रश्न और अन्त्य के एक पाद से उत्तर दिया है। वृक्ष शब्द से कार्य और वन शब्द से कारण का ग्रहण है। जैसे सब पदार्थों को पृथिवी, पृथिवी को सूर्य्य, सूर्य को विद्युत् और बिजुली को वायु धारण करता है, वैसे ही इन सब को ईश्वर धारण करता है ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(किम्) (स्वित्) (वनम्) संभजनीयं कारणवनम् (कः) (उ) वितर्के (सः) परोक्षे (वृक्षः) यो वृश्च्यते छिद्यते स संसारः (आस) अस्ति (यतः) यस्य प्रकृत्याख्यकारणस्य सकाशात् (द्यावापृथिवी) विस्तृतौ सूर्यभूमिलोकौ (निष्टतक्षुः) नितरां ततक्ष, अत्र वचनव्यत्ययः। (मनीषिणः) मनस ईषिणो योगिनः (मनसा) विज्ञानेन (पृच्छत) (इत्) एव (उ) प्रसिद्धौ (तत्) सः (यत्) यः (अध्यतिष्ठत्) अधिष्ठातृत्वेन वर्त्तते (भुवनानि) भवन्ति भूतानि येषु ताँल्लोकान् (धारयन्) वायुविद्युत्सूर्यादिना धारणं कारयन् ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनीषिणः ! यूयं मनसा विदुषः प्रति किं स्विद्वनं क उ स वृक्ष आसेति पृच्छत, यतो द्यावापृथिवी को निष्टतक्षुः। यद्यो भुवनानि धारयन्नध्यतिष्ठत् तदिदु ब्रह्म विजानीतेत्युत्तरम् ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र पादत्रयेण प्रश्नः पादैकेनोत्तरम्। वृक्षशब्देन कार्यं वनशब्देन कारणं चोच्यते, यथा सर्ववस्तूनि पृथिवी, पृथिवीं सूर्यः, सूर्यं विद्युद्, विद्युतं वायुश्च धरति, तथैवैतान् जगदीश्वरो दधाति ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात तीन पादांमध्ये प्रश्न व शेवटच्या एका पादामध्ये उत्तर दिलेले आहे. वृक्ष शब्दाचा अर्थ कार्य व वन शब्दाचा अर्थ कारण असा आहे. जसे सर्व पदार्थांना पृथ्वी, पृथ्वीला सूर्य, सूर्याला विद्युत व विद्युतला वायू धारण करतो तसे या सर्वांना ईश्वर धारण करतो.